"यह गौशाला न केवल गायों के लिए सुरक्षित स्थान है, बल्कि यह सामुदायिक विकास और ग्रामीण रोजगार का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मैं देखती हूँ कि यहाँ की गायें स्वस्थ और खुशहाल हैं, और यहाँ का प्रबंधन उत्कृष्ट है।"
वर्ष 2001 में श्रीकृष्ण गौशाला समिति, जोबनेर का रजिस्ट्रेशन होने के बाद 14 जनवरी, 2002 से गौशाला का संचालन आरंभ हुआ। श्रीकृष्ण गौशाला समिति, जोबनेर एक ऐसी संस्था है जो गायों और अन्य पशुओं की देखभाल और संरक्षण के लिए काम करती है। गौशाला में गायों को आश्रय, भोजन और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसका उद्देश्य गायों की रक्षा करना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है।
श्रीकृष्ण गौशाला के लिए वर्ष 2001 में जोबनेर निवासी भामाशाह कैलाश चंद अग्रवाल द्वारा 2 बीघा 13 बिस्वा जमीन दान की गई।
श्रीकृष्ण गौशाला की स्थापना से अब तक समिति के 5 अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं। गौशाला की स्थापना व संचालन के बाद आनंदी लाल ठेकेदार को प्रथम अध्यक्ष (वर्ष 2001-2006) के रूप में चुना गया। उनके कार्यकाल के बाद उनके फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक निर्मल कुमावत अध्यक्ष ( वर्ष 2006-2014) चुने गए। इसके बाद तीसरे अध्यक्ष विष्णु पारीक (वर्ष 2014-2017) व चौथे अध्यक्ष के रूप में लादूराम कुमावत (वर्ष 2017-2024) का चयन किया गया। वर्तमान में श्रीकृष्ण गौशाला समिति, जोबनेर के अध्यक्ष विष्णु पारीक हैं, जिन्हें जून 2024 में दूसरी बार अध्यक्ष के लिए चुना गया।
श्रीकृष्ण गौशाला की स्थापना की सोच तब पनपी जब वर्ष 1999-2000 में राजस्थान में अकाल की स्थिति पैदा हुई। अकाल के कारण पशुओं की स्थिति दयनीय हो गई। भूख व प्यास से पीड़ित पलायन करते लोग व पशु रास्तों में ही मरने लगे। उस समय गौभक्त पेमाराम कुमावत, आमकास की ढाणी, जोबनेर निवासी ने यह बीड़ा उठाया कि जोबनेर में इन बेघर पशुओं के लिए एक गौशाला हो ताकि गायों को आश्रय मिल सकें। उन्होंने गौशाला की पहल करते हुए 1 बीघा जमीन और 5100/-रुपए नकद राशि देने की घोषणा की और जोबनेर के कुछ गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की। कस्बे के वरिष्ठ अध्यापक व भामाशाह कजोड़मल सैनी से मुलाकात करके इस योजना के बारे में बताया गया। गौभक्त पेमाराम कुमावत रविवार की एक दोपहर रास्ता पूछते-पूछते कजोड़ मल सैनी के घर पहुंचे। पेमाराम कुमावत ने गौशाला बनाने का अपना विचार उनके सामने रखा। कजोड़ मल सैनी ने एक रजिस्ट्रर खरीदकर लाकर देने की बात कही और एक माह बाद फिर मिलने की बात कही। उस रजिस्ट्रर में कजोड़ मल सैनी ने गौमाता से संबंधित कुछ लेख, विचार लिखें। उस रजिस्ट्रर को पूरे कस्बे में दुकानदारों के पास लेकर गए और उनके हस्तारक्षर करवाया। गौशाला के लिए चंदे के लिए अनुरोध किया लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया। गौशाला बनाने की पहल को लेकर हर रविवार को कबूतर खाने में शाम 4 बजे मीटिंग रखी जाती पर मीटिंग में कोई नहीं आता। यह सिलसिला करीब 1 साल तक ऐसे ही चलता रहा। एक दिन मीटिंग में करीब 5-7 लोग एकत्रित हुए और पेमाराम कुमावत के साथ उनके घर पहुंचे। उनके पिताजी से गौशाला के लिए 1 बीघा जमीन दान करवाने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर लिए। इस बीच भामाशाह कैलाश चंद अग्रवाल भी आगे आए और एक दिन मीटिंग में खड़े होकर घोषणा की कि वे भी जोबनेर में गौशाला निर्माण के लिए पौने तीन बीघा जमीन दान करना चाहते हैं पर शर्त यह है कि गौशाला उनकी ही जमीन पर बने।
गौवंश संर्वधन और इनका संरक्षण करने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में महलां रोड पर कैलाश चंद अग्रवाल द्वारा दान दी गई 2 बीघा 13 बिस्वा जमीन पर एक खुले प्रांगण में श्रीकृष्णा गौशाला की शुरुआत हुई। करीब 14 साल बाद तत्कालीन अध्यक्ष विष्णु पारीक ने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में गौशाला में पशुओं के लिए टीन शेड लगवाने सहित अन्य पक्के निर्माण करवाये। गायों- बछड़ों के लिए पक्के अलग-अलग बाडों का निर्माण करवाया गया। भामाशाह हरदेव प्रसाद कुमावत की ओर से बेबरवालों की ढाणी में गौशाला निर्माण के लिए खरीदी गई जमीन के बेचान से मिली 2 लाख 61 हजार रुपए की राशि श्रीकृष्ण गौशाला समिति को दी गई। इस राशि से गौशाला के विकास को ओर गति मिली। गौशाला की बाउंड्री बॉल सहित चारागाह का निर्माण किया गया। वर्तमान में श्रीकृष्ण गौशाला में 350 गायें हैं।
"यह गौशाला न केवल गायों के लिए सुरक्षित स्थान है, बल्कि यह सामुदायिक विकास और ग्रामीण रोजगार का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मैं देखती हूँ कि यहाँ की गायें स्वस्थ और खुशहाल हैं, और यहाँ का प्रबंधन उत्कृष्ट है।"
"मैं नियमित रूप से इस गौशाला का दौरा करता हूँ और हर बार यहां का माहौल मुझे सुकून देता है। गायों की स्वच्छता, भोजन और देखभाल का जो स्तर है, वह सराहनीय है। यह गौशाला गायों की सुरक्षा के साथ-साथ जैविक खेती में भी योगदान दे रही है।"
"गौशाला में आकर मुझे सच्ची शांति का अनुभव हुआ। यहाँ की गायों की देखभाल बहुत अच्छी तरह से की जाती है और उनकी सेवा में जुड़ना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रहा। यह संस्थान हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखता है और पर्यावरण की भी रक्षा करता है।"